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मायाके बंन्धन

 

मायाके बंन्धन


स्वागत बा मोर टरफसे

डाइ बाबा जलम डेलै हम्रहिन

बचाइ हम्रे दाइ बाबन हे ।।

डाइ बाबा बह्रैलै बचलै हम्रहिन

स्वागत करि डाइ बाबन हे ।।



नौ महिना बोक्लै पेटेम डाइ हम्रहिन

आघे बह्रेना बा डाइ बाबा हे ।

जलम डेलै डाइ बाबा हम्रहिन

पल्ना बा हम्रे डाइ बाबा हे ।।



मन्दिरमे जैठि पुजा करे हम्रे

पुजा करि पुजा करि डाइ बाबा हे ।

शिक्षा डेलै डाइ बाबा हम्रहिन

भगवान सम्झो डाइ बाबा हे ।।





मोर संघरिया


कर्णाली के जुर पानी, खल खल बहना लडिया ।

टुहाँर जसिन साथ डेना, ओरे के बा मोर संघरिया ।।


मायाके बंन्धन फलामके बंन्धनसे बलगर रहट ।

सफल्टा नै भगवानके बरदान हो ।।

जीवन मे सुख दुख एक थो संघरिया हो ।



मोर मनके बाट


आत्मिय संघरियनके जीवन एकथो बहल लडिया जस्टे हो । बहल लडिया घुमके नै आइट ओस्के हमार जीवन फेन घुमके कबुनै आइट । तबे मारे जिवनमे कबु दु:ख कबु सु:ख टबु पार हमार जीवन एकडम दु:खि रहट कजे ? मोर बिचारमे लागट हम्रहिन चाहल अनसार सुख कबु नै मिलि । एक चिजके जरुरट पूरा हुइटिकिल डेसरके चिजके जरुरट परेलागट । टबे मारे हम्रहिन जिवनमे कबु सुक ओ सन्तुस्ति नै मिलि । जीवन मे सान्ति मान सम्मान ओ खुशि पाइक लाग हम्रहिन गरिब असहाय हुकनके सहयोग करे परट । हमार लोकगित नाचगान करे पारट । सुनैठै पहिले पुर्खनके दुख ओ थकान बिस्राइक लाग भिनसरया से लेके आधा रात सम्के गित ओ नाच गैना ओ नछछ्ना किरित । अभिन फेन उ गिट बा ओ कुछ लोप हुइना जोखिम मे पुगल बा कलेसे कोइ बहुत आघे पुगाल बा मने हम्रे अपन कला संस्कृति हेराइ नै देना हो काहेको इहे हमार अस्लि सम्पति हो । इहिहे बचाइ ओ जगाइ पर्ना बा । काहेकि इ सब पुरखन ठेन बटिन, अभिन कुछ पुर्खा बटै ओ ओइन ठनसे लोककथा लोकगित नाच सिख्के इहिहे जगाइ पर्ना जरुरि बा । 




डिन समय कबु घुमके नै आइट । भगवान समयहे अत्रा बलगर काहे बनैले बटै ना इहिहे रोके सेकजाइट ना समयसे बोले सेक्जाइट । एकठो मनैनके जुनि भेटाके अपन सोचल काम पूरा परक परठ । काहेकि मनै अमर नै हुइ । एक रोज सब जहन इ डुनिया छोरके जाइ पर्ना बा । मनैनके जीवन अत्रा अमूल्य बा कि हिरा मोति सोन चांदि कुछ नै हो ।



मने हम्रे स्वार्थि ओ लाल्चि बटि टबे मारे मनैन अत्रा दुख भोगे परट । जब संसारमे स्वार्थ लालचके अन्ट हुइ टब इ दुख ओ असान्तिके अन्ट हुइ ओ सबके जिवनमे सान्ति प्राप्ट हुइ कना मोर बिचार बा । 


धन कना भगवानके डेहल तिसर आँखी हो । 

जीवन संघर्षहो, संघर्स नै सफल्टा हो ।।


रस अपनहे अप्नही खाइट । मनैनके ज्या काम कर्ना रहट उ रिसले नै मुस्कुराके करक परट । 




अन्तिम शब्द


संघरियनके मोर लिखल शब्द अशुद्द हुइ कलेसे सच्याके पहर डेबि । कौनो मन डुखैना बाट लिखल हुइम कलेसे माफ करडेबी । अत्रे लिख्ति इ कलम रोक्टि बिडा हुइटु ।


निरन्जु कुमारी, कैलाली

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